सिंधु नदी जल समझौता 1960 (Indus Water Treaty Hindi), भारत और पाकिस्तान के बीच जल संसाधनों के प्रबंधन के लिए किया गया एक ऐतिहासिक समझौता है. इस समझौते ने सिंधु नदी प्रणाली की 6 प्रमुख नदियों के जल वितरण को विनियमित किया. भारत को पूर्वी नदियों का पानी मिला, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों का पानी उपयोग करने का अधिकार दिया गया. हालांकि, पाकिस्तान इस समझौते को लेकर असुरक्षित महसूस करता है, खासकर भारत द्वारा पश्चिमी नदियों पर किए जा रहे विकास कार्यों और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण. यह ब्लॉग उन मुख्य कारणों और भू-राजनीतिक मुद्दों पर प्रकाश डालता है, जिनसे पाकिस्तान चिंतित है.
सिंधु नदी तंत्र
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सिंधु नदी का उद्गम
सिंधु नदी का उद्गम तिब्बत के हिमालय क्षेत्र से होता है, जहां यह विभिन्न ग्लेशियरों से निकलती है. लगभग 3,180 किलोमीटर की लंबी यात्रा के बाद यह पाकिस्तान के सिंध प्रांत में अरब सागर में मिलती है. सिंधु नदी की जलधारा का क्षेत्रीय विकास में महत्वपूर्ण योगदान है, क्योंकि यह कृषि के लिए आवश्यक जल स्रोत प्रदान करती है. इसके साथ ही, यह क्षेत्र की जलापूर्ति, बिजली उत्पादन (हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजनाओं) और परिवहन के लिए भी आवश्यक है.
सिंधु नदी तंत्र में स्थित सहायक नदियों के साथ मिलकर यह आर्थिक और सामाजिक जीवन के लिए एक रीढ़ की हड्डी के रूप में कार्य करती है. इस नदी की जलवायु और पारिस्थितिकी में भी महत्वपूर्ण भूमिका है, जिससे आसपास के क्षेत्रों में जीवन के विविध पहलुओं को समर्थन मिलता है.
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सिंधु नदी तंत्र का विस्तार व सहायक नदियां
सिंधु नदी तंत्र, जो दक्षिण एशिया की एक महत्वपूर्ण जल प्रणाली है, लगभग 3,180 किलोमीटर लंबी है और इसका उद्गम तिब्बत के हिमालय क्षेत्र से होता है. यह नदी पाकिस्तान में अरब सागर में मिलती है. सिंधु नदी की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं: झेलम, जो कश्मीर क्षेत्र से होकर बहती है; चेनाब, जो पंजाब में महत्वपूर्ण जल स्रोत है; रावी, जो भारतीय पंजाब से होकर निकलती है; ब्यास, जो हिमाचल प्रदेश से निकलकर पंजाब में मिलती है; और सतलुज, जो भारत में प्रकट होती है और पाकिस्तान में बहती है. यह नदियां सिंधु नदी तंत्र के जल और संसाधनों को समृद्ध करती हैं, जो कृषि, बिजली उत्पादन और परिवहन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं.
सिंधु नदी तंत्र का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
सिंधु नदी तंत्र का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी है, क्योंकि यह प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता का स्थल रहा है. सिंधु नदी जल समझौता (1960) इसी नदी तंत्र को लेकर ही भारत और पाकिस्तान के बीच जल उपयोग के अधिकारों को लेकर किया गया है. हालांकि इसके कार्यान्वयन और विवादों ने दोनों देशों के बीच तनाव पैदा किया है. सिंधु नदी तंत्र का समुचित प्रबंधन और संरक्षण आवश्यक है ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए जल संसाधनों की स्थिरता सुनिश्चित की जा सके.
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सिंधु नदी जल समझौता 1960 क्या है?
परिचय और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- सिंधु नदी प्रणाली का महत्व: सिंधु नदी प्रणाली में छह प्रमुख नदियां शामिल हैं, जिनका पानी भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए जीवनरेखा है. इस प्रणाली के बिना पाकिस्तान की कृषि और जल आपूर्ति गंभीर संकट में पड़ सकती है.
- बंटवारे के बाद जल विवाद: 1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद, जल संसाधनों को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ. इस समस्या का समाधान करने के लिए एक समझौते की आवश्यकता महसूस की गई.
- विश्व बैंक की मध्यस्थता: भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए, विश्व बैंक ने 1950 के दशक में दोनों देशों के बीच मध्यस्थता की. इस मध्यस्थता के परिणामस्वरूप सिंधु जल समझौते का निर्माण हुआ.
- 1960 में समझौता: सिंधु नदी जल समझौता 1960 असल में 19 सितंबर 1960 को हुआ था, जब भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने कराची में सिंधु जल समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते ने जल विवाद को सुलझाने का मार्ग प्रशस्त किया.
- नदियों का वितरण: सिंधु नदी जल समझौता 1960 के अनुसार, तीन पूर्वी नदियां (सतलुज, ब्यास, रावी) भारत को मिलीं, जबकि तीन पश्चिमी नदियां (सिंधु, झेलम, चिनाब) पाकिस्तान को दी गईं. इससे दोनों देशों के बीच जल बंटवारा संतुलित हुआ.
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सिंधु नदी जल समझौता 1960 की शर्तें और नदियों का वितरण
- नदियों का अधिकार: समझौते के अनुसार, भारत को तीन पूर्वी नदियों (सतलुज, ब्यास, रावी) के जल का पूरा अधिकार मिला. पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों (सिंधु, चिनाब, झेलम) के जल का उपयोग करने का अधिकार दिया गया.
- पश्चिमी नदियों पर भारत का सीमित उपयोग: समझौते में यह प्रावधान था कि भारत पश्चिमी नदियों पर सीमित रूप से जलविद्युत परियोजनाएं और सिंचाई परियोजनाएं कर सकता है. हालांकि, इसके लिए भारत को पाकिस्तान को जानकारी देनी होती है.
- अन्य क्षेत्रों में सहयोग: समझौते में दोनों देशों के बीच जल प्रबंधन, बाढ़ नियंत्रण, और आपातकालीन स्थिति में सहयोग के लिए भी प्रावधान शामिल किए गए. इसके तहत डेटा का आदान-प्रदान किया जाता है.
- वित्तीय प्रावधान: इस समझौते के तहत भारत ने पाकिस्तान को सिंचाई के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की थी. इसके जरिए पाकिस्तान अपने जल संसाधनों का सही ढंग से उपयोग कर सके.
- नियंत्रण तंत्र: दोनों देशों ने जल बंटवारे के कार्यान्वयन के लिए स्थायी सिंधु आयोग का गठन किया. यह आयोग दोनों देशों के बीच सिंधु नदी प्रणाली से जुड़े मुद्दों को हल करने के लिए नियमित रूप से बैठक करता है.
पाकिस्तान की चिंताएं
पानी की कमी और जलवायु परिवर्तन
- पानी की बढ़ती कमी: पाकिस्तान में जल संकट तेजी से बढ़ रहा है, और यह दुनिया के सबसे अधिक जल संकटग्रस्त देशों में से एक बनता जा रहा है. कृषि पर निर्भर पाकिस्तान की बड़ी आबादी के लिए यह समस्या गंभीर रूप ले रही है.
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण सिंधु नदी प्रणाली में बाढ़, सूखा और अस्थिर जल प्रवाह जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं. इससे पाकिस्तान की जल सुरक्षा पर सीधा असर पड़ रहा है.
- पश्चिमी नदियों पर निर्भरता: पाकिस्तान अपनी जल आपूर्ति का 90% से अधिक पश्चिमी नदियों (सिंधु, चिनाब, झेलम) पर निर्भर करता है. यदि इन नदियों में जल प्रवाह कम होता है, तो पाकिस्तान की खाद्य और जल सुरक्षा प्रभावित हो सकती है.
- हिमनदों का पिघलना: जलवायु परिवर्तन के चलते हिमालयी ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे नदी में शुरुआती बाढ़ का खतरा और भविष्य में जल प्रवाह में कमी की संभावना बढ़ रही है. इससे सिंधु प्रणाली की नदियों का प्रवाह अनिश्चित हो गया है.
- भविष्य की अस्थिरता: जलवायु परिवर्तन और भारत की परियोजनाओं से जल प्रवाह में बदलाव आने का डर पाकिस्तान को है. इससे भविष्य में पाकिस्तान को पानी की और भी गंभीर कमी का सामना करना पड़ सकता है.
भारत की परियोजनाएं और बांध निर्माण
- भारत की जलविद्युत परियोजनाएं: भारत ने पश्चिमी नदियों पर कई जलविद्युत परियोजनाएं शुरू की हैं, जैसे किशनगंगा और बगलीहार परियोजनाएं. ये परियोजनाएं बिजली उत्पादन के लिए बनाई गई हैं, लेकिन पाकिस्तान को इससे पानी के प्रवाह में कमी का डर है.
- पाकिस्तान की आपत्तियां: पाकिस्तान को यह चिंता है कि भारत पश्चिमी नदियों पर बांध बनाकर पानी का प्रवाह नियंत्रित कर सकता है. इससे पाकिस्तान को सिंचाई और जलापूर्ति के लिए आवश्यक पानी मिलने में कमी हो सकती है.
- बगलीहार बांध विवाद: बगलीहार बांध पर भारत और पाकिस्तान के बीच काफी विवाद हुआ, जिसमें पाकिस्तान ने बांध के डिजाइन पर आपत्ति जताई. इस मुद्दे को विश्व बैंक की मध्यस्थता में सुलझाया गया, जिसमें भारत के पक्ष में फैसला आया.
- पानी रोकने का डर: पाकिस्तान को डर है कि भारत युद्ध या तनाव के समय बांधों के माध्यम से पश्चिमी नदियों का पानी रोक सकता है. इससे पाकिस्तान की कृषि और जल आपूर्ति पर गंभीर असर हो सकता है.
- परियोजनाओं का कानूनी पक्ष: भारत का कहना है कि सिंधु नदी जल समझौता 1960 के तहत उसे सीमित मात्रा में पश्चिमी नदियों का उपयोग करने का अधिकार है. भारत द्वारा बनाई जा रही परियोजनाएँ इसी समझौते के दायरे में आती हैं.
भारत का रुख और रणनीति
भारत के जल परियोजनाओं का उद्देश्य
- जलविद्युत उत्पादन: भारत की पश्चिमी नदियों पर बनाई जा रही परियोजनाओं का मुख्य उद्देश्य जलविद्युत उत्पादन है. ये परियोजनाएं देश की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करती हैं, खासकर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख क्षेत्रों में.
- सिंचाई के लिए जल प्रबंधन: भारत इन परियोजनाओं के माध्यम से सीमित सिंचाई के लिए जल का प्रबंधन भी कर रहा है. सिंधु नदी जल समझौता 1960 के तहत, भारत को पश्चिमी नदियों से सिंचाई के लिए कुछ मात्रा में जल उपयोग करने की अनुमति दी गई है.
- पानी के अपव्यय को रोकना: भारत का दावा है कि इन परियोजनाओं का उद्देश्य जल के अपव्यय को रोकना है. जलाशयों और बांधों के माध्यम से, भारत प्राकृतिक जल संसाधनों का बेहतर प्रबंधन करना चाहता है ताकि अनावश्यक रूप से पानी समुद्र में न बहे.
- जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग: भारत इन परियोजनाओं के माध्यम से सिंधु नदी जल समझौता 1960 के तहत प्राप्त अधिकारों का पूरा उपयोग करना चाहता है. इस प्रकार, वह अपने जल संसाधनों का अधिकतम लाभ उठाने का प्रयास कर रहा है.
- स्थानीय विकास: इन जल परियोजनाओं से भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों, विशेषकर जम्मू-कश्मीर और हिमालयी क्षेत्रों में आर्थिक विकास और रोजगार सृजन हो रहा है. यह इन क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे और स्थानीय आबादी के लिए लाभकारी सिद्ध हो रहा है.
कूटनीतिक और अंतर्राष्ट्रीय दबाव
- पाकिस्तान का अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रयास: पाकिस्तान ने कई बार अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की जल परियोजनाओं को लेकर आपत्ति दर्ज कराई है. पाकिस्तान का दावा है कि भारत की परियोजनाएं सिंधु नदी जल समझौता 1960 का उल्लंघन करती हैं, जिससे उसकी जल सुरक्षा प्रभावित हो रही है.
- विश्व बैंक की मध्यस्थता: सिंधु नदी जल समझौता 1960 की मध्यस्थता विश्व बैंक द्वारा की गई थी, और पाकिस्तान ने बगलीहार बांध और किशनगंगा परियोजना जैसे मामलों में विश्व बैंक से हस्तक्षेप की माँग की है. हालांकि, कई विवादों में विश्व बैंक ने भारत के पक्ष में निर्णय दिया है.
- भारत का रुख: भारत का दावा है कि वह सिंधु जल समझौते की सभी शर्तों का पालन कर रहा है. भारत ने यह भी कहा है कि वह अपनी परियोजनाओं के माध्यम से केवल वही जल संसाधन उपयोग कर रहा है, जो समझौते के तहत उसे अधिकार प्राप्त हैं.
- अंतर्राष्ट्रीय दबाव: भारत पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव होता है कि वह सिंधु जल समझौते का पालन करे और पाकिस्तान के साथ किसी भी जल विवाद को कूटनीतिक तरीकों से सुलझाए. इसके बावजूद, भारत अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को यह स्पष्ट करता रहा है कि उसकी परियोजनाएँ समझौते के अनुरूप हैं.
- संवेदनशील संबंधों पर प्रभाव: भारत-पाकिस्तान के बीच जल विवाद, कश्मीर और सीमा विवादों के साथ जुड़ा हुआ है. इसलिए जल मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव के कारण इन दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों में और भी तनाव पैदा हो सकता है.
भविष्य के संभावित समाधान
समझौते में सुधार की आवश्यकता
- समय के साथ उत्पन्न नई चुनौतियां: 1960 में किए गए सिंधु जल समझौते के बाद जलवायु परिवर्तन, बढ़ती जनसंख्या, और जल की बढ़ती मांग जैसी नई चुनौतियाँ सामने आई हैं. इन चुनौतियों से निपटने के लिए समझौते में संशोधन की आवश्यकता महसूस हो रही है.
- जलवायु परिवर्तन के प्रभाव: ग्लोबल वार्मिंग और हिमनदों के पिघलने से सिंधु नदी प्रणाली पर बाढ़ और सूखे जैसी घटनाओं का खतरा बढ़ गया है. विशेषज्ञ मानते हैं कि इन परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए समझौते में सुधार आवश्यक है.
- जल बंटवारे का पुनर्मूल्यांकन: पाकिस्तान की बढ़ती जल जरूरतों और भारत की जल परियोजनाओं को देखते हुए, जल बंटवारे के पुराने मानकों का पुनर्मूल्यांकन जरूरी हो गया है. दोनों देशों को वर्तमान और भविष्य की जरूरतों के अनुसार जल का वितरण करना होगा.
- तकनीकी और वैज्ञानिक सुधार: समझौते में तकनीकी और वैज्ञानिक आधारों पर सुधार की आवश्यकता है, ताकि जल संसाधनों का अधिक कुशल प्रबंधन किया जा सके. इससे दोनों देशों को जल का अधिकतम और पारदर्शी उपयोग सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी.
- कूटनीतिक संवाद का पुनः आरंभ: समझौते में सुधार के लिए दोनों देशों के बीच नए सिरे से कूटनीतिक संवाद की आवश्यकता है. जल विवाद को सुलझाने और दीर्घकालिक समाधान खोजने के लिए खुले और सहयोगात्मक संवाद महत्वपूर्ण होंगे.
संवाद और कूटनीति से समाधान
- संवाद की आवश्यकता: भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी जल समझौते को लेकर विवाद को हल करने के लिए संवाद अनिवार्य है. दोनों देशों को एक-दूसरे की चिंताओं को सुनने और समझने के लिए एक मंच तैयार करना चाहिए.
- समझौतों का पुनरावलोकन: कूटनीतिक प्रयासों के तहत, मौजूदा जल समझौतों की समीक्षा कर उनके प्रावधानों को अद्यतन किया जा सकता है. यह संभावित रूप से जल संकट को संबोधित करने के लिए सहायक होगा.
- विज्ञान–आधारित समाधान: जल प्रबंधन के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने से जल संसाधनों का प्रभावी उपयोग किया जा सकता है. यह दोनों देशों के लिए एक स्थायी समाधान सुनिश्चित कर सकता है.
- अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता: यदि द्विपक्षीय वार्ताएँ सफल नहीं होती हैं, तो अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता को शामिल करना एक विकल्प हो सकता है. यह एक तटस्थ दृष्टिकोण प्रदान करेगा और विवाद को हल करने में मदद कर सकता है.
- जल संरक्षण और साझा विकास: दोनों देशों को जल संरक्षण के उपायों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, साथ ही साझा विकास परियोजनाओं को लागू करने का प्रयास करना चाहिए. इससे न केवल जल विवाद का समाधान होगा, बल्कि आर्थिक सहयोग भी बढ़ेगा.
सिंधु नदी जल समझौते पर ताजा खबर
भारत चाहता है जलसंधि में बदलाव
भारत ने हाल ही में पाकिस्तान को सिंधु जल समझौते में बदलाव की मांग को लेकर एक नोटिस जारी किया है. यह समझौता 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ था, जिसका उद्देश्य सिंधु नदी प्रणाली के जल संसाधनों का बंटवारा करना था. भारत का तर्क है कि तब से अब तक कई महत्वपूर्ण बदलाव हो चुके हैं, जिनके चलते इस समझौते की समीक्षा और संशोधन आवश्यक हो गए हैं.
बदलती परिस्थितियों की मांग
भारत का कहना है कि जब यह समझौता हुआ था, तब की परिस्थितियों और वर्तमान परिस्थितियों में बड़ा अंतर आ चुका है. देश की जनसंख्या तेजी से बढ़ी है, कृषि पद्धतियों में बदलाव आया है, और ऊर्जा उत्पादन के लिए भी अब जल संसाधनों की आवश्यकता है. इन सभी बदलावों को ध्यान में रखते हुए, भारत का मानना है कि पुराने समझौते में संशोधन की जरूरत है ताकि यह वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा कर सके.
अनुच्छेद XII(3) के तहत संशोधन की है गुंजाइश
सिंधु जल संधि के अनुच्छेद XII(3) के तहत, दोनों सरकारों के बीच आपसी बातचीत से इस समझौते के प्रावधानों में संशोधन किया जा सकता है. भारत का यह कदम इसी प्रावधान के तहत उठाया गया है. दिए गए नोटिस के बाद, भारत ने साफ किया है कि वह इस मुद्दे पर पाकिस्तान से बातचीत करने और इसमें आवश्यक संशोधन लाने के लिए तैयार है.
आतंकवाद और सीमा सुरक्षा
भारत ने यह भी कहा है कि सीमा पार से होने वाले आतंकवादी गतिविधियों का असर सिंधु जल संधि के प्रभावी संचालन पर पड़ता है. जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान से आए आतंकवाद ने इस संधि की प्रगति और पानी के बंटवारे में रुकावटें डाली हैं. इस कारण भी भारत का कहना है कि संधि की वर्तमान संरचना पर फिर से विचार करने की जरूरत है ताकि दोनों देशों के बीच विवादित मुद्दों का हल निकाला जा सके.
जल संसाधनों का न्यायपूर्ण हो वितरण
भारत का प्रमुख उद्देश्य है कि जल संसाधनों का बंटवारा न्यायपूर्ण हो और भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए किया जाए. आने वाले समय में जल संकट की संभावनाओं को देखते हुए, भारत का जोर है कि जल संसाधनों का उपयोग न केवल कृषि के लिए बल्कि ऊर्जा उत्पादन और अन्य आवश्यकताओं के लिए भी किया जाए. इस दिशा में संशोधन से दोनों देशों के बीच जल विवाद कम करने और बेहतर सहयोग की संभावनाएं बन सकती हैं.
निष्कर्ष
सिंधु जल समझौता 1960, भारत और पाकिस्तान के बीच जल संसाधनों के वितरण के लिहाज से एक महत्वपूर्ण संधि है. यह संधि आज भी दक्षिण एशियाई जल विवादों का केंद्र बनी हुई है, खासकर पाकिस्तान की चिंताओं के कारण. जलवायु परिवर्तन और जल संकट ने इस समझौते को और जटिल बना दिया है, जिससे पाकिस्तान को भविष्य में अपनी जल आपूर्ति पर खतरा महसूस हो रहा है. इसके समाधान के लिए दोनों देशों के बीच नए संवाद और कूटनीतिक वार्ता की आवश्यकता है, ताकि समझौते को वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों के अनुसार समायोजित किया जा सके.
FAQ
सिंधु जल समझौता क्या है?
यह 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ जल-वितरण समझौता है, जिसे विश्व बैंक ने मध्यस्थता की थी.
सिंधु जल समझौते में कौन-सी नदियां आती हैं?
इसमें छह नदियां शामिल हैं: सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास, और सतलुज.
सिंधु जल समझौते में नदियों का विभाजन कैसे हुआ है?
पश्चिमी नदियां (सिंधु, झेलम, चिनाब) पाकिस्तान को दी गई हैं, और पूर्वी नदियां (रावी, ब्यास, सतलुज) भारत को.
क्या भारत पश्चिमी नदियों का उपयोग कर सकता है?
हां, लेकिन केवल सीमित उद्देश्यों जैसे सिंचाई, नौवहन और जलविद्युत उत्पादन के लिए.
सिंधु नदी जल समझौता पाकिस्तान के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
पाकिस्तान कृषि और पेयजल के लिए पश्चिमी नदियों पर निर्भर है.
क्या सिंधु नदी जल समझौता भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धों के बावजूद बना रहा?
हां, यह कई युद्धों और तनावों के बावजूद प्रभावी रहा है.
क्या सिंधु जल समझौते को बदला या समाप्त किया जा सकता है?
केवल दोनों देशों की सहमति से इसे बदला या समाप्त किया जा सकता है.
सिंधु जल समझौते में विश्व बैंक की भूमिका क्या है?
विश्व बैंक इस समझौते का एक हस्ताक्षरकर्ता है और इसके क्रियान्वयन और विवाद समाधान में सहायता करता है.
सिंधु जल समझौते में क्या भारत अपने हिस्से का पूरा पानी उपयोग कर रहा है?
नहीं, पूर्वी नदियों का कुछ पानी अभी भी बिना उपयोग के पाकिस्तान में बहता है.
स्थायी सिंधु आयोग क्या है?
यह एक द्विपक्षीय संस्था है जो सिंधु जल समझौते के कार्यान्वयन और विवादों का निपटारा करती है.